25-11-2001  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

"दुआयें दो-दुआयें लो, कारण का निवारण कर, समस्याओं का समाधान करो"

आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्यार स्वरूप बच्चों के प्यार की डोरी में खींचकर मिलन मनाने आये हैं। बच्चों ने बुलाया और हज़ूर हाज़िर हो गये। अव्यक्ति मिलन तो सदा मनाते रहते हैं, फिर भी साकार में बुलाया तो बापदादा बच्चों के विशाल मेले में पहुँच गये हैं। बापदादा को बच्चों का स्नेह, बच्चों का प्यार देख खुशी होती है और दिल ही दिल में चारों ओर के बच्चों के लिए गीत गाते हैं –“वाह! श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चे वाह! भगवान के प्यार के पात्र आत्मायें वाह”! इतना बड़ा भाग्य और इतना साधारण रूप में सहज प्राप्त होना है, यह स्वप्न में भी नहीं सोचा था। लेकिन आज साकार रूप में भाग्य को देख रहे हो। बापदादा देख रहे हैं कि दूर बैठे भी बच्चे मिलन मेला मना रहे हैं। बापदादा उन्हों को देख मिलन मना रहे हैं। मैजारिटी माताओं को गोल्डन चांस मिला है और बापदादा को भी विशेष शक्ति सेना को देख खुशी होती है कि चार दीवारों में रहने वाली मातायें बाप द्वारा विश्व कल्याणकारी बन, विश्व की राज्य अधिकारी बन गई हैं। बन गये हैं या बन रहे हैं, क्या कहेंगे? बन गये हैं ना! विश्व के राज्य का माखन का गोला आप सबके हाथ में है ना! बापदादा ने देखा कि जो भी मातायें मधुबन में पहुँची हैं उन्हों को एक बात की बहुत खुशी है, कौन-सी खुशी है? कि बापदादा ने हम माताओं को विशेष बुलाया है। तो माताओं से विशेष प्यार है ना! नशे से कहती हैं - बापदादा ने बुलाया है। हमको बुलाया है, हम क्यों नहीं आयेंगे! बापदादा भी सबकी रूहरूहान सुनते रहते हैं, यह खुशी का नशा देखते रहते हैं। वैसे तो पाण्डव भी कम नहीं हैं, पाण्डवों के बिना भी विश्व के कार्य की समाप्ति नहीं हो सकती। लेकिन आज विशेष माताओं को पाण्डवों ने भी आगे रखा है।

बापदादा सभी बच्चों को बहुत सहज पुरूषार्थ की विधि सुना रहे हैं। माताओं को सहज चाहिए ना! तो बापदादा सब माताओं, बच्चों को कहते हैं, सबसे सहज पुरूषार्थ का साधन है – “सिर्फ चलते-फिरते सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हर एक आत्मा को दिल से शुभ भावना की दुआयें दो और दूसरों से भी दुआयें लो”। चाहे आपको कोई कुछ भी दे, बददुआ भी दे लेकिन आप उस बददुआ को भी अपने शुभ भावना की शक्ति से दुआ में परिवर्तन कर दो। आप द्वारा हर आत्मा को दुआ अनुभव हो। उस समय अनुभव करो जो बददुआ दे रहा है वह इस समय कोई-न-कोई विकार के वशीभूत है। वशीभूत आत्मा के प्रति वा परवश आत्मा के प्रति कभी भी बददुआ नहीं निकलेगी। उसके प्रति सदा सहयोग देने की दुआ निकलेगी। सिर्फ एक ही बात याद रखो कि हमें निरन्तर एक ही कार्य करना है – “संकल्प द्वारा, बोल द्वारा, कर्मणा द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा दुआ देना और दुआ लेना। अगर किसी आत्मा के प्रति कोई भी व्यर्थ संकल्प वा निगेटिव संकल्प आवे भी तो यह याद रखो मेरा कर्त्तव्य क्या है! जैसे कहाँ आग लग रही हो और आग बुझाने वाले होते हैं तो वह आग को देख जल डालने का अपना कार्य भूलते नहीं, उन्हों को याद रहता है कि हम जल डालने वाले हैं, आग बुझाने वाले हैं, ऐसे अगर कोई किसी भी विकार की आग वश कोई भी ऐसा कार्य करता है जो आपको अच्छा नहीं लगता है तो आप अपना कर्त्तव्य याद रखो कि मेरा कर्त्तव्य है - किसी भी प्रकार की आग बुझाने का, दुआ देने का। शुभ भावना की भावना का सहयोग देने का। बस एक अक्षर याद रखो, माताओं को सहज एक शब्द याद रखना है –“दुआ देना, दुआ लेना”। मातायें यह कर सकती हो? (सभी मातायें हाथ उठा रही हैं) कर सकती हो या करना ही है? पाण्डव कर सकते हैं? पाण्डव कहते हैं - करना ही है। गाया हुआ है पाण्डव अर्थात् सदा विजयी और शक्तियां सदा विश्व कल्याणकारी नाम से प्रसिद्ध हैं।

बापदादा को चारों ओर के बच्चों से अभी तक एक आश रही हुई है। हर आत्मा को दिल से शुभभावना की दुआयें दो और दुलायें लो बतायें वह कौन-सी आश है? जान तो गये हो! टीचर्स जान गई हो ना! सभी बच्चे यथा शक्ति पुरूषार्थ तो कर रहे हो। बापदादा पुरूषार्थ देख करके मुस्कराते हैं। लेकिन एक आश यह है कि पुरूषार्थ में अभी तीव्रगति चाहिए। पुरूषार्थ है लेकिन अभी तीव्रगति चाहिए। इसकी विधि है – ‘कारण’ शब्द समाप्त हो जाए और निवारण स्वरूप सदा बन जायें। कारण तो समय अनुसार बनते ही हैं और बनते रहेंगे। लेकिन आप सब निवारण स्वरूप बनो क्योंकि आप सभी बच्चों को विश्व के निवारण कर सभी को, मैजारिटी आत्माओं को निर्वाणधाम में भेजना है। तो जब स्वयं को निवारण स्वरूप बनाओ तब विश्व की आत्माओं को निवारण स्वरूप द्वारा सब समस्याओं का निवारण कर निर्वाणधाम में भेज सकेंगे। अभी विश्व की आत्मायें मुक्ति चाहती हैं तो बाप द्वारा मुक्ति का वर्सा दिलाने वाले निमित्त आप हो। तो निमित्त आत्मायें पहले स्वयं को भिन्न-भिन्न समस्याओं के कारण को निवारण कर मुक्त बनायेंगे तब विश्व को मुक्ति का वर्सा दिला सकेंगे। तो मुक्त हैं? किसी भी प्रकार की समस्या का कारण आगे नहीं आये, यह कारण है, यह कारण है, यह कारण है.... जब कोई कारण सामने बनता है तो कारण का सेकण्ड में निवारण सोचो, यह सोचो कि जब विश्व का निवारण करने वाली हूँ तो क्या स्वयं की छोटी-छोटी समस्याओं का स्वयं निवारण नहीं कर सकती! नहीं कर सकता! अभी तो आत्माओं की क्यू आपके सामने आयेगी “हे मुक्तिदाता मुक्ति दो” क्योंकि मुक्ति दाता के डायरेक्ट बच्चे हो, अधिकारी बच्चे हो। मास्टर मुक्तिदाता तो हो ना। लेकिन क्यू के आगे आप मास्टर मुक्ति दाताओं के तरफ से एक रूकावट का दरवाजा बन्द है। क्यू तैयार है लेकिन कौन-सा दरवाजा बन्द है? पुरूषार्थ में कमज़ोर पुरूषार्थ का, एक शब्द का दरवाजा है, वह है ‘क्यों’। क्वेश्वन मार्क,(?) क्यों, यह क्यों शब्द अभी क्यू को सामने नहीं लाता। तो बापदादा अभी देशविदेश के सभी बच्चों को यह स्मृति दिला रहे हैं कि आप समस्याओं का दरवाजा “क्यों”, इसको समाप्त करो। कर सकते हैं? टीचर्स कर सकती हैं? पाण्डव कर सकते हैं? सभी हाथ उठा रहे हैं या कोई-कोई? फारेनर्स तो एवररेडी हैं ना! हाँ या ना? अगर हाँ तो सीधा हाथ उठाओ। कोई ऐसे-ऐसे कर रहे हैं। अभी कोई भी सेवाकेन्द्र पर समस्या का नाम-निशान न हो। ऐसे हो सकता है? हर एक समझे मुझे करना है। टीचर्स समझें मुझे करना है, स्टूडेन्ट समझें मुझे करना है, प्रवृत्ति वाले समझें मुझे करना है, मधुबन वाले समझें हमें करना है। कर सकते हैं ना? समस्या शब्द ही समाप्त हो जाये, कारण खत्म होके निवारण आ जाए, यह हो सकता है! क्या नहीं हो सकता है, जब पहले-पहले स्थापना के समय में सभी आने वाले बच्चों ने क्या प्रॉमिस किया था और करके दिखाया! असम्भव को सम्भव करके दिखाया। दिखाया ना? तो अभी कितने साल हो गये? स्थापना को कितने वर्ष हो गये? (65) तो इतने वर्षो में असम्भव से सम्भव नहीं हो सकता है? हो सकता है? मुख्य टीचर्स हाथ उठाओ। पंजाब नहीं उठा रहा है, शक्य है क्या? थोड़ा सोच रहे हैं, सोचो नहीं। करना ही है। औरों का नहीं सोचो, हर एक अपना सोचे, अपना तो सोच सकते हो ना? दूसरे को छोड़ो, अपना सोचकर अपने लिए तो हिम्मत रख सकते हो ना? कि नहीं? फारेनर्स रख सकते हैं? (हाथ उठाया) मुबारक हो। अच्छा, अभी जो समझते हैं, वह दिल से हाथ उठाना, दिखावे से नहीं। ऐसे नहीं सब उठा रहे हैं तो मैं भी उठा लूं। अगर दिल से दृढ़ संकल्प करेंगे कि कारण को समाप्त कर निवारण स्वरूप बनना ही है, कुछ भी हो, सहन करना पड़े, माया का सामना करने पड़े, एक-दो के सम्बन्ध-सम्पर्क में सहन भी करना पड़े, मुझे समस्या नहीं बनना है। हो सकता है? अगर दृढ़ निश्चय है तो वह पीछे से लेकर आगे तक हाथ उठाओ। (बापदादा ने सभी से हाथ उठवाया और सारा दृश्य टी.वी. पर देखा) अच्छा है ना एक्सरसाइज़ हो गई! हाथ इसीलिए उठाते हैं, जैसे अभी एक दो को देख करके हाथ उठाने में उमंग आता है ना! ऐसे ही जब भी कोई समस्या आवे तो सामने बापदादा को देखना, दिल से कहना बाबा, और बाबा हाजिर हो जायेगा, समस्या खत्म हो जायेगी। समस्या सामने से हट जायेगी और मेरा कर्त्तव्य है - किसी भी प्रकार की आग बुझाने का, दुआ देने का बापदादा सामने हाजिर हो जायेगा। ‘‘मास्टर सर्वशक्तिवान’’ अपना यह टाइटल हर समय याद करो। नहीं तो बापदादा अभी याद-प्यार में मास्टर सर्वशक्तिवान न कहकर सर्वशक्तिवान कहे? शक्तिवान बच्चों को याद- प्यार, अच्छा लगेगा? मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, मास्टर सर्वशक्तिवान क्या नहीं कर सकते हैं! सिर्फ अपना टाइटल और कर्त्तव्य याद रखो। टाइटल है ‘‘मास्टर सर्वशक्तिवान’’ और कर्त्तव्य है ‘‘विश्व-कल्याणकारी’’। तो सदा अपना टाइटल और कर्त्तव्य याद करने से शक्तियां इमर्ज हो जायेंगी। मास्टर बनो, शक्तियों के भी मास्टर बनो, आर्डर करो, हर शक्ति को समय पर आर्डर करो। वैसे शक्तियां धारण करते भी हो, हैं भी लेकिन सिर्फ कमी यह हो जाती है कि समय पर यूज़ नहीं करने आती। समय बीतने के बाद याद आता है, ऐसे करते तो बहुत अच्छा होता। अब अभ्यास करो जो शक्तियां समाई हुई हैं, उसको समय पर यूज़ करो। जैसे इन कर्मेन्द्रियों को आर्डर से चलाते हो ना, हाथ को, पांव को चलाते हो ना! ऐसे हर शक्ति को आर्डर से चलाओ। कार्य में लगाओ। समा के रखते हो, कार्य में कम लगाते हो। समय पर कार्य में लगाने से शक्ति अपना कार्य ज़रूर करेगी। और खुश रहो, कभी-कभी कोई बच्चों का चेहरा बड़ा सोच-विचार में, थोड़ा ज़्यादा गम्भीर दिखाई देते हैं। खुश रहो, नाचो-गाओ, आपकी ब्राह्मण जीवन है ही खुशी में नाचने की और अपने भाग्य और भगवान के गीत गाने की। तो नाचने-गाने वाले जो होते हैं ना वह ऐसा गम्भीर होके नाचे तो कहेंगे नाचना नहीं आता। गम्भीरता अच्छी है लेकिन टू मच गम्भीरता, थोड़ा-सा सोचवि चार का लगता है।

बापदादा ने तो अभी सुना कि देहली का उद्घाटन हो रहा है (9 दिसम्बर को देहली में ओम् शान्ति रिट्रीट सेन्टर का उद्घाटन रखा गया है) लेकिन बापदादा अभी कौन-सा उद्घाटन देखने चाहता है? वह डेट तो फिक्स करो, यह छोटे-मोटे उद्घाटन तो हो ही जायेंगे। लेकिन बापदादा उद्घाटन चाहते हैं ‘‘सब विश्व की स्टेज पर बाप समान साक्षात फरिश्ते सामने आ जाएं और पर्दा खुल जाए।’’ ऐसा उद्घाटन आप सबको भी अच्छा लगता है ना! रूहरूहान में भी सभी कहते रहते हैं, बाप भी सुनते रहते हैं, बस अभी यही इच्छा है - बाप को प्रत्यक्ष करें और बाप की इच्छा है कि पहले बच्चे प्रत्यक्ष हों। बाप बच्चों के साथ प्रत्यक्ष होगा। अकेला नहीं होगा। तो बापदादा वह उद्घाटन देखने चाहते हैं। उमंग भी अच्छा है, जब रूहरूहान करते हैं तो रूहरूहान के समय सबके उमंग बहुत अच्छे होते हैं। लेकिन जब कर्मयोगी बनते हैं तो थोड़ा फर्क पड़ जाता। तो मातायें क्या करेंगी? बड़ा झुण्ड है माताओं का। और माताओं को देख बापदादा को बहुत खुशी होती है। किसने भी माताओं को इतना आगे नहीं लाया है लेकिन बापदादा माताओं को आगे बढ़ते देख खुश होते हैं। माताओं का विशेष यह संकल्प है कि जो किसी ने नहीं करके दिखाया वह हम मातायें बाप के साथ करके दिखायेंगे। करके दिखायेंगी? अभी एक हाथ की ताली बजाओ। मातायें, सब कुछ कर सकती हैं। माताओं में उमंग अच्छा है। कुछ भी नहीं समझें लेकिन यह तो समझ लिया है ना कि मैं बाबा की हूँ, बाबा मेरा है। यह तो समझ लिया है ना! मेरा बाबा तो सब कहते हैं ना? बस दिल से यही गीत गाते रहो - मेरा बाबा, मेरा बाबा, मेरा बाबा....

अच्छा - टीचर्स हाथ उठाओ। टीचर्स बहुत आई हैं (1300 टीचर्स आई हैं) टीचर्स माताओं को अच्छी तरह से ले आई ना! यह भी अपने पुण्य की पूंजी जमा कर ली। आपको फायदा हुआ ना। आपके पुण्य का खाता बढ़ गया। अच्छा - डबल फारेनर्स हाथ उठाओ। डबल फारेनर्स की स्पेशल एक विशेषता बापदादा ने देखी है। कोई ऐसा ग्रुप नहीं होता जिसमें डबल फारेनर्स नहीं हों। सर्वव्यापी हो गये हैं। मधुबन निवासी और बापदादा आप डबल फारेनर्स को देखकर खास खुश होते हैं इसलिए भले आओ। अच्छा। इसमें जो सारी सभा में कुमारियां हैं, वह हाथ उठाओ। बहुत कुमारियां हैं। कुमारियां तो कमाल करने वाली हैं ना? कुमारियों को एकस्ट्रा लक मिला हुआ है। यह पाण्डव हंसते हैं, उलहना देते हैं कि कुमारी अगर सेन्टर पर आती तो दीदी कारण शब्द को समाप्त कर निवारण स्वरूप बनो बन जाती और पाण्डव सेन्टर पर आते तो दादा नहीं बनते हैं, तो देखो कुमारियों को विशेष यह एक लिफ्ट है, सरेन्डर मन से हुई और बापदादा का मुरली बजाने का तख्त मिल जाता है। यह तख्त कम नहीं है। पाण्डव भी मुरली सुनाते हैं लेकिन मैजारिटी बहिनें। तो यह कुमारियों का लक है। कुमारी अपनी गिफ्ट जितनी चाहें उतनी ले सकती हैं। अच्छा – कुमार कितने हैं? कुमार भी कम नहीं हैं। कुमार अभी सुकुमार बन गये हैं। और कुमारों के बिना सेन्टर नहीं चल सकता है। टीचर्स बताओ कुमारों के बिना सेन्टर चल सकता है? नहीं चल सकता। कुमारों की एक विशेषता बहुत अच्छी है, कुमार जो दृढ़ संकल्प करें वह प्रैक्टिकल में ला सकते हैं क्योंकि सुकुमार उल्टा तो करेंगे नहीं, सुल्टा ही करेंगे। तो कुमारों में दृढ़ संकल्प की गिफ्ट है, जो चाहते हैं वह कर सकते हैं - यह गिफ्ट है। बाकी यूज़ करना आपके हाथ में है। गवर्मेन्ट भी चाहती है कि सुकुमारों का ग्रुप बड़े ते बड़ा बने, कुमारों का नहीं। अभी बापदादा का यह इशारा प्रैक्टिकल में नहीं लाया है, सारे विश्व के कुमारों का ग्रुप मधुबन में इकट्ठा हो और प्राइम मिनिस्टर, मिनिस्टर यहाँ आवें। आ सकते हैं। अच्छा है। कुमार अपना जलवा दिखा सकते हैं। कुमारों का ऐसा ग्रुप साथ ले जाओ, कोई कहाँ का, कोई कहाँ का.. और डायरेक्ट निमन्त्रण देवें, सब देशों के हों और निमन्त्रण देवें, डेट फिक्स करें। कुमारों में तो बापदादा की बहुत-बहुत-बहुत शुभ उम्मीदें हैं और पूर्ण होनी ही हैं। अच्छा।

(भारत के कोने-कोने से दो मास माताओं के अभियान निकले) तब तो मातायें इतनी आई हैं, पौना हाल तो मातायें हैं। (13 हज़ार मातायें आई हैं) सारे हाल की शोभा मातायें हैं। अच्छा, मातायें या कन्यायें जो अभियान में गई थीं, वह उठो। थोड़े आये हैं। उन्हों को याद मिल जायेगी। बापदादा उन्हों को भी टी.वी में देख रहे हैं। उन सबको भी मुबारक है। अच्छी यात्रा निकाली और चारों ओर सेवा भी बहुत अच्छी हुई, इसलिए बहुत-बहुत मुबारक हो। प्रवृत्ति वाले अधरकुमार हाथ उठाओ। अच्छा, अधरकुमारों की विशेषता क्या है? अधरकुमारों ने विश्व के आत्माओं की एक विशेष भ्रांति मिटाई है, लोग समझते थे कि ब्राह्मण बनना अर्थात् घर गृहस्थ छोड़ना लेकिन जब से अधरकुमार और अधर कुमारियों को देखते हैं तो वह प्रेरणा लेते हैं कि हम भी ब्राह्मण बन सकते हैं इसलिए पहली जो भ्रांतियां थी, ब्रह्माकुमारियों के पास कोई जावे नहीं, तो अधर कुमारों ने सेवा की वृद्धि का दरवाजा खोला है। (सभी ने तालियां बजाई) भले खूब ताली बजाओ। अधरकुमार भी कम नहीं हैं। हर एक वर्ग का बापदादा के पास ब्राह्मण जीवन में महत्त्व है।

अच्छा - छोटे बच्चे कितने आये हैं। छोटे बच्चों को देखकर सब खुश होते हैं क्योंकि छोटेपन में कितना बड़ा भाग्य पा लिया है। हर एक छोटा बच्चा फलक से कहता है मैं ब्रह्माकुमार हूँ। और छोटे बच्चे अनुभव बहुत अच्छा सुनाते हैं, हम भगवान से मिलते हैं, बातें करते हैं। तो छोटे बच्चों की बातें सबको बहुत अच्छी लगती हैं इसलिए छोटे नहीं हो लेकिन आप छोटे बच्चे भी सेवा करने निमित्त बहुत अच्छे हो। इसलिए बापदादा छोटे बच्चों को बहुत-बहुत, बहुत-बहुत प्यार करते हैं। अच्छा।

सेवाधारियों से - यह सिस्टम बहुत अच्छी बनाई है, हर एक को सेवा का, खाता जमा करने का चांस मिलता है। सेन्टर पर सेवा करते हो, वह तो करते ही हो। लेकिन यज्ञ की सेवा का विशेष महत्त्व है, तो अभी यह महत्त्व पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर को मिला है, बहुत बड़ा ज़ोन लिया है। अचल, प्रेम, राज यह जो भी बैठी हैं, पंजाब की मुख्य टीचर्स उठो। फर्स्ट और सेकण्ड के बिना गति नहीं है। अच्छा, बापदादा को तो पंजाब को देख करके पंजाब की शेरनी (दादी चन्द्रमणि) याद आ रही है। पंजाब को भी याद आती है। तो बहुत अच्छा, मेहनत ज्यादा करनी पड़ी ना। पांच ज़ोन मिलकर पंजाब कहलाते हैं, पंजाब में पांच नदियां भी मशहूर हैं। तो आपको बड़ा ग्रुप मिला है और पहला ग्रुप मिला है, तो पहला नम्बर ले लिया ना। अच्छा और जो पंजाब के सेवाधारी आये हैं वह उठो। बहुत सेवाधारी हैं। बहुत अच्छा सेवा की मुबारक हो, मुबारक हो। यज्ञ सेवा का महत्त्व क्यों है? कमज़ोर पुरूषार्थ का एक शब्द का दरवाजा है वह है क्यों वैसे तो सेन्टर भी यज्ञ ही है ना! लेकिन मधुबन को महायज्ञ कहा जाता है। हैं तो सभी यज्ञ, महायज्ञ का महान सेवा का प्रसाद मिलता है क्योंकि महायज्ञ में कितनी महान आत्मायें आती हैं। तो इतनी महान आत्माओं की सेवा का चांस मिलता है इसलिए महायज्ञ की सेवा का महत्त्व है। पंजाब ज़ोन ने एक तो कमाल की है। बताओ, कौन-सी कमाल की है? याद आता है, क्या कमाल की है? बोलो। आतंकवाद खत्म कर दिया। छोटा-मोटा तो छोड़ो। वह तो जहाँ-तहाँ है लेकिन जितना ही आतंकवाद का चक्कर चला, उतना चक्कर को छोटा कर दिया। तो यह भी अच्छी कमाल है, आपके कोने-कोने की तपस्या की। अभी डर तो नहीं है ना! बाकी तो विश्व में ही आतंकवाद है। फारेन में भी है। अच्छा फारेन वाले, फारेन की विशेषता है - जो भी बाप ने कहा वह फौरन करने वाले। फारेन माना फौरन। बाप ने कहा और डबल फारेनर्स ने फौरन किया। यह है फारेन की निशानी। ठीक है ना! अच्छा - अभी कोई रह गया? सब आ गये। सभी सोचते हैं हमसे बापदादा मिला ही नहीं। अब तो सबसे मिल लिया ना। एक स्थान पर बैठकर सबसे मिल गये।

अच्छा - अभी एक सेकण्ड बापदादा देता है, सब अलर्ट होकर बैठो। बापदादा से सभी का प्यार 100 परसेन्ट है ना! प्यार तो परसेन्ट में नहीं है ना। 100 परसेन्ट है? तो 100 परसेन्ट प्यार का रिटर्न देने के लिए तैयार हो? 100 परसेन्ट प्यार है ना। जिसका थोड़ा सा कम हो, वह हाथ उठा लो। पीछे बच जायेंगे। अगर कम हो तो हाथ उठा लो। 100 परसेन्ट प्यार नहीं है तो वो हाथ उठाओ। प्यार की बात कर रहे हैं। (एक-दो ने हाथ उठाया) अच्छा प्यार नहीं है, कोई हर्जा नहीं, हो जायेगा। जायेंगे कहाँ, प्यार तो करना ही पड़ेगा। अच्छा - अभी सभी अलर्ट होकर बैठे हैं ना! अभी सभी प्यार के रिटर्न में एक सेकण्ड बाप के सामने अन्तर्मुखी हो अपने आपसे दिल से, दिल में संकल्प कर सकते हो कि अब हम स्वयं के प्रति वा औरों के प्रति समस्या नहीं बनेंगे। यह दृढ़ संकल्प प्यार के रिटर्न में कर सकते हो? जो समझते हैं - कुछ भी हो जाए, अगर कुछ हो भी गया तो सेकण्ड में स्वयं को परिवर्तन कर देंगे, वह दिल में संकल्प दृढ़ करें। जो कर सकता है दृढ़ संकल्प, बापदादा मदद देंगे लेकिन मदद लेने की विधि है दृढ़ संकल्प की स्मृति। बापदादा के सामने संकल्प लिया है, यह स्मृति की विधि आपको सहयोग देगी। तो कर सकते हो? कांध हिलाओ। देखो, संकल्प से क्या नहीं हो सकता है, घबराओ नहीं, बापदादा की एकस्ट्रा मदद ज़रूर मिलेगी।

बापदादा ने तो सिर्फ अपना शुभ संकल्प सुनाया। अभी करना बच्चों का काम है। जो जितना करता है उतना उसका खाता जमा होता है। बापदादा समझते हैं कि सब बच्चों का खाता सारे कल्प के लिए इतना जमा हो जाए जो राज्य भी करें और आधा कल्प पूज्य भी बनें। पूज्य बनने का खाता और राज्य अधिकारी बनने का खाता दोनों ही जमा हो जायें। किसी भी बच्चे का खाता कम नहीं हो। सब भरपूर हों। सम्पन्न हों, सम्पूर्ण हों।

अच्छा - आज साइन्स के साधन से दूर-दूर में भी बच्चे सुन रहे हैं, देख रहे हैं। (आज बापदादा की मुरली भारत में टी.वी. पर तथा विदेश में इन्टरनेट द्वारा सभी सुन वा देख रहे हैं) तो उन सभी बच्चों को बापदादा भी देख रहे हैं।

अच्छा, सभी बच्चों को बापदादा मिलन मेले की मुबारक दे रहे हैं। चाहे कोई ने पत्र द्वारा मिलन मेला मनाया, चाहे कार्ड द्वारा मिलन मेला मनाया, चाहे सम्मुख मिलन मेला मना रहे हैं। चाहे अपने स्थान पर बैठे मिलन मेला मना रहे हैं। चारों ओर का एक-एक बच्चा बाप का अति प्यारा है। बापदादा एक-एक बच्चे को देख बहुत हर्षित होते हैं। बच्चे कहते हैं बाप का प्यार गिनती करने में नहीं आता, वर्णन करने में नहीं आता तो बाप भी कहते हैं कि सिकीलधे, लाडले, विशेष आत्मायें बच्चों का प्यार भी वर्णन करने में नहीं आता। ऐसे बच्चे भी सारे कल्प में किसको नहीं मिलेंगे।

ऐसे सर्व तीव्र पुरुषार्थी श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के प्यार का रिटर्न करने वाले हिम्मतवान बच्चों को, सदा अपने विशेषताओं द्वारा औरों को भी विशेष आत्मा बनाने वाले पुण्य आत्मायें बच्चों को, सदा समस्या समाधान स्वरुप विशेष आगे उड़ने वाले बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

विदाई के समय

आज विशेष जो मधुबन में ऊपर सिक्यूरेटी के कार्य में बिजी हैं, वह बापदादा के सामने आ रहे हैं। यज्ञ की रखवाली करने वालों की बहुत ही बड़ी ड्युटी है तो रखवाली कर रहे हैं, दूर बैठे भी याद कर रहे हैं, तो खास बापदादा जो ऊपर कोई भी सेवा अर्थ बैठे हैं, चाहे ज्ञान सरोवर में, चाहे पाण्डव भवन में, चाहे शान्तिवन में जो भी रखवाली करने वाले हैं, उन्हों को बापदादा विशेष याद-प्यार दे रहे हैं। म्यूजियम वाले, मानेसर वाले जो भी ड्युटी में हैं उन सबको भी बहुत-बहुत याद। मेहनत बहुत अच्छी कर रहे हैं।

(रोज़ी बहन ने विशेष याद दी है) जिन्होंने भी खास याद दी है उन सबको खास-खास-खास याद। बाकी मानेसर में भी अच्छी मेहनत कर रहे हैं। दिल्ली वाले जलवा दिखायेंगे। दिखायेंगे ना जलवा? सेवा की नई झलक दिखायेंगे। अच्छी मेहनत है और मन से मेहनत कर रहे हैं। जो इन्जीनियर निमित्त हैं, अभी तैयार कर रहे हैं, उन्हों की हिम्मत पर भी बापदादा बलिहार जा रहे हैं। दिखाई नहीं देता है लेकिन दिखायेंगे, यह भी तो हिम्मत है ना। तो बापदादा ने जो दिल्ली को गिफ्ट दी है उस गिफ्ट को सहयोग दिया है, इसके लिए बहुत-बहुत मुबारक हो। आप सबकी दिल्ली है। सिर्फ दिल्ली वालों की नहीं, आप सबकी दिल्ली है। राज्य तो करना है ना। दिल्ली में राज्य करेंगे या फारेन में राज्य करेंगे, फारेनर्स?

(अभी सोनीपत का भी कार्य शुरू करना है) सब हो जायेगा। सबमें सफलता है ही। (हैदराबाद की जमीन का भी फाइनल हो गया है) थोड़ा-बहुत तो जमीनों के ऊपर खिटखिट होती है, यह तो वरदान है ब्राह्मणों को खिटखिट का भी लेकिन सफलता साथ है। खिटखिट के साथ, सफलता का भी वरदान साथ है इसलिए थोड़ा टाइम लग जाता है। होना तो है ही। हुआ ही पड़ा है। जो हैदराबाद के निमित्त बने हैं चीफ मिनिस्टर्स या जो भी आफिसर्स उन सबको याद भेजना, टोली भेजना। हिम्मत अच्छी रखी है। अभी तो सबमें हिम्मत आ गई है। चाहे छोटे हैं, चाहे बड़े हैं लेकिन हिम्मत से कर रहे हैं। अच्छा कर रहे हैं। जहाँ भी बन रहा है, बापदादा, ड्रामा, सर्व परिवार की दुआयें हैं ही हैं। इसलिए सफलता है ही। (सारनाथ, आगरा, लण्डन आदि में भवन बन रहे हैं) जहाँ भी बन रहा है, सेवा पहले ही तैयार है। आप सबके, सर्व के अंगुली देने से चारों ओर कार्य चल रहा है, सफलता हो रही है। और आगे बढ़के और सफलता होनी ही है। तो आप सब बना रहे हो या वहाँ बनाने वाले बना रहे हैं। आप सब भी साथी हो ना! जहाँ भी जो भी बनता है, हमारा बन रहा है। ऐसे नहीं दिल्ली में बन रहा है, हैदराबाद में बन रहा है। हमारे बाबा का है, हमारा है। हमारा पन सब तरफ होना चाहिए। इसको कहा जाता है बेहद परिवार, बेहद की भावना और इसी भावना का फल मिलता है। (बोरीवली में भी जमीन का साइन हुआ है) अच्छा है ना - समाचार सुनके खुशी होती है ना। अच्छा।

(बहुत ही मातायें टेन्ट में रही हुई हैं) टेन्ट में रहने वालों को टेन्ट तो मिला ना और नीचे कुछ बिछौना तो मिला ना। भक्ति में तो मिट्टी में सोते हैं, आपको मिट्टी तो नहीं मिली ना। कम्बल तो मिला ना, वह तो ठण्ड में सोते हैं। आपको बहुत-बहुत मौज हैं बस बाप की गोदी में सो जाओ। टेन्ट नहीं देखो, बाप की गोदी देखो। बापदादा पहले-पहले टेन्ट में ही चक्कर लगाता है क्योंकि देखो टेन्ट वालों ने सहन तो किया ना। तो सहन करने का फल मिलता है। अच्छा है टेन्ट में सोने वाले हाथ उठाओ। अच्छा है, बापदादा टेन्ट वालों को अपने वतन में बुलाके मसाज़ करेंगे। खुश हैं। देखो, सबकी नज़र, दादियों से पूछो सबसे ज्यादा किसको याद किया? टेन्ट वालों को याद किया ना। (दादियों ने सब टेन्ट में चक्कर लगाया) इसीलिए आप भाग्यवान हो। अच्छा। सभी देश-विदेश वालों ने, जिसने भी याद भेजी है, वह समझें हमको विशेष रूप से बापदादा ने याद दी है। अच्छा।